खटीमा गोलीकांड की 31वीं बरसी पर सीएम धामी ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि, हिमालय बचाने का भी लिया संकल्प

खटीमा (ऊधमसिंह नगर)
आज एक सितंबर आज का दिन उत्तराखंड के रैबासियों के जहन में एक घाव की तरह अंकित है …और हो भी क्यों ना…. इन दिन आज के उधमसिंहनगर जिले के खटीमा में पृथक राज्य की मांग को लेकर 7 लोगों ने अपनी जिंदगी की परवाह करे बगेर गोली सीने पर खाई ताकी जिस राज्य की कल्पना उनके जहन में है वो बन सके.

आज खटीमा गोलीकांड की बरसी पर खटीमा में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया….जिसमें सीएम पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा गोलीकांड में पृथक उत्तराखंड राज्य की संकल्पपूर्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले राज्य आंदोलनकारियों को नमन कर श्रद्धांजलि दी…..इस मौके पर सीएम धामी ने कहा कि वीर राज्य आंदोलनकारियों का बलिदान केवल इतिहास का हिस्सा नहीं बल्कि उत्तराखंड की आत्मा में अंकित वो शौर्यगाथा है, जिसने पर्वतीय अस्मिता और अस्तित्व को नई संजीवनी प्रदान की……राज्य निर्माण की महान यात्रा में राज्य आंदोलनकारियों का त्याग और अदम्य साहस सदैव अविस्मरणीय रहेगा…

अब जरा इतिहास के कुछ पन्ने पलटकर उस दिन की काली तस्वीरों पर नजर डालते हैं …क्योंकि इससे राज्य के प्रति और इसे बनाने वालों के प्रति हमारे अंदर की सोई जिज्ञासा और राज्य के प्रति लगाव की भावना उत्पन्न हो सके….उत्तराखण्ड को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की मांग तो सन् 1938 से की जा रही थी. आजादी के बाद भी ये मांग लगातार जारी रही लेकिन 17 जून, 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के एक फैसले के कारण उत्तराखण्ड के छात्र एवं युवा बौखला उठे और उन्होंने जबरदस्त आन्दोलन छेड़ दिया….1 सितंबर 1994 को हजारों की तादाद में स्थानीय लोग पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए सड़कों पर उतरें थे…. जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया. खटीमा में हुए इस गोलीकांड में 7 लोंगों को अपनी जान गंवानी पड़ी…. वहीं 165 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे…. इस गोलीकांड में भगवान सिंह सिरौला, प्रताप सिंह, सलीम अहमद, गोपीचन्द, धर्मानन्द भट्ट, परमजीत सिंह और रामपाल शहीद हुए थे…1 सितंबर 1994 में खटीमा गोलीकांड की घटना की सूचना पूरे कुमाऊं और गढ़वाल में आग की तरह फैल गई…. ठीक उसके अगले दिन यानी 2 सितंबर 1994 को मसूरी में भी लोग प्रदर्शन करने के लिए इक्कठा हुए थे….. मसूरी में भी पुलिस की गोलीबारी में 6 लोग शहीद हुए थे जिनमें बलवीर सिंह नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी, मदन मोहन ममगई, बेलमती चौहान और हंसा धनेई शामिल थे. 2 सितंबर की तारीख को उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन के रूप में याद किया जाता है.
इसके बाद रामपुर तिराहा गोलीकांड, नैनीताल गोलीकांड , कोटद्वार गोलीकांड और देहरादून गोलीकांड के कितने वीर जवान शहीद हो गए , माताओं बहनों ने भी अपनी बलिदान दिया ….लेकिन बीते समय के साथ ये यादें धुंधली होती जा रही है जिसे बचाने और यादों को जिवंत रखने के लिए विशेष प्रयास भी जरूरी हैं .