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परंपरा को जीवित रखा है इन कारीगरों ने…लेकिन आज इनका अस्तित्व विलुप्ति की कगार पर

अल्मोड़ा

उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को ताम्रनगरी के नाम से भी जाना जाता है….अल्मोड़ा में बनने वाले तांबे के बर्तनों को करीब 100 साल से यहां पर बनाया जा रहा है….अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ला और दुगलखोला स्थित ताम्र नगरी में बनाए जाने वाले तांबे के बर्तनों की डिमांड उत्तराखंड समेत कई राज्यों और विदेशों में भी देखने को मिलती है… मशीनों के बदले हाथ से बनाए जाने वाले तांबे के बर्तनों की डिमांड ज्यादा देखने को मिलती है…

स्थानीय कारीगर बताते हैं कि किसी समय पर यहां दर्जनों लोग तांबे के बर्तन बनाने के काम से जुड़े हुए थे…अब हाल ऐसा है कि गिने-चुने लोग ही यहां काम कर रहे हैं…अब करीब 15 लोग ही यहां पर काम कर रहे हैं…ताँबे के कारीगरों का कहना हैं कि सरकार द्वारा मदद नहीं की जाती है, सिर्फ आश्वासन दिया जाता है…. सरकार द्वारा अगर उनकी मदद की जाए, तो युवा इससे जुड़ेंगे और आगे बढ़ेंगे…

यहाँ हाथ से बनने वाले बर्तनों की बात करें तो वर्तमान में यहां पर तांबे से परात,गागर,कलश, फौले,गिलास,प्लेट,गगरी, जलकुंडी समेत कई साज-सजावट का सामान भी मिलता है… बनावट और वजन के हिसाब से प्रोडक्ट के दाम तय होते हैं… टम्टा मोहल्ला में बनने वाले बर्तन अल्मोड़ा समेत आसपास के बाजार में आपको आसानी से मिल जाएंगे… लेकिन आधुनिकीकरण की इस चका चौंध में अल्मोड़ा का यह हस्तसिल्प फीका पड़ता जा रहा है… इस हस्तसिल्प के कार्य और कारीगरों को दरकार है सरकार की मदद की… जिससे जहां एक ओर इस परंपरागत कला को संरक्षण मिलेगा वहीं दूसरी ओर इनके ताबें के बर्तनो को बड़ा बाजार.

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