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नंदा राजजात यात्रा पुलों का होगा ऑडिट, इस साल होनी है यात्रा

चमोली

नंदा राजजात यात्रा पर पड़ने वाले पुलों का ऑडिट किया जाएगा … प्रदेश में इस साल शुरू नंदा राजजात यात्रा होने जा रही है…हर 12 साल ये यात्रा होती है …अनुमान है कि इस साल 4 लाख यात्रियों के आने की संभावना है …पर्यटन विभाग व्यवस्थाओं को बेहतर करने में जुट गया है …यात्रा मार्गों को दुरुस्त करने का काम जारी है …

नंदा राजजात का इतिहास

7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें साल में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की…

राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया… इस परंपरा का निर्वहन 12 साल या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है…

चौसिंगा खाडू

चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है… मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है…राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाडू के पीठ पर फंची (पोटली) बांधी जाती है… जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है… खाडू पूरी यात्रा की अगुवाई करता है…होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है…

नौटी गांव से यात्रा का शुभारंभ

सिद्धपीठ नौटी में भगवती नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगाल की पवित्र राज छंतोली और चार सींग वाले भेड़ (खाडू) की विशेष पूजा की जाती है…कांसुवा के राजवंशी कुंवर यहां यात्रा के शुभारंभ और सफलता का संकल्प लेते हैं… मां भगवती को देवी भक्त आभूषण, वस्त्र, उपहार, मिष्ठान आदि देकर हिमालय के लिए विदा करते हैं…

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