भारत सरकार के सहयोग से पिथौरागढ़ की दो ग्लेशियर झीलों के अध्ययन के लिए 20 सितंबर को टीम होंगी रवाना

देहरादून
हिमालयी राज्यों में ग्लेशियर झीलें अक्सर आपदा का एक बड़ा कारण बनती है….. जिसका उदाहरण उत्तराखंड में भी देखने को मिल चुका है… जिनमें सबसे बड़ी आपदा साल 2013 में केदारनाथ में आई, यही कारण है कि इन ग्लेशियर को लेकर भारत सरकार गंभीर है….. जिसके बाद सरकार ने पूरे देश में खतरनाक बन रहे ग्लेशियर के अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों की टीमें भेजी है….. जिनमें से एक टीम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भी दो ग्लेशियर के अध्ययन के लिए 20 सितंबर को रवाना हो रही है जिसमें भारत सरकार और वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक शामिल है.

हाल में भारत सरकार ने हिमालय राज्यों में ग्लेशियर झील पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी करते हुए कई ग्लेशियर को अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा जिसमें उत्तराखंड की पांच ग्लेशियर झील शामिल थी….. जिनका भारत सरकार के वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं जिससे इन ग्लेशियर झीलों की मौजूदा स्थिति का पता लगाया जा सके……उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में 968 ग्लेशियर हैं जबकि 1290 ग्लेशियर झीलें हैं और भारत सरकार ने जिन 5 ग्लेशियर झीलों को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा है उनमें चमोली और पिथौरागढ़ के ग्लेशियर शामिल है जिसमें राज्य आपदा प्रबंधन विभाग चमोली जिले में मौजूद वसुंधरा ग्लेशियर झील का अध्ययन कर चुकी है जबकि पिथौरागढ़ में मौजूद अति संवेदनशील दो झीलों का अध्ययन करने के लिए 20 सितंबर को एक टीम भारत सरकार की टीम के साथ अध्ययन करने के लिए रवाना हो रही है जिससे इन ग्लेशियर की सही स्थिति का पता लगाया जा सके और इन ग्लेशियर पर नजर रखी जा सके…. वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड में ग्लेशियर जिलों का अध्ययन इसलिए जरूरी है क्योंकि साल 2013 में केदारनाथ और 2021 में चमोली में आई आपदा में जान और माल दोनों का बड़ा नुकसान हुआ था जिसका कारण ग्लेशियर से बनी झील

20 सितंबर को पिथौरागढ़ में दो ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिए जो टीम रवाना होगी उसमें उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग, GIS और आईटीबीपी के एक्सपर्ट के साथ वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी शामिल होंगे जो झील की लंबाई चौड़ाई और उसमें पानी की स्थिति का आकलन करेंगे और उसके साथ भविष्य में झील टूटने की स्थिति में प्रभावित क्षेत्र का भी आंकलन करेगी और अध्ययन के बाद जिनके आसपास सेंसर भी लगाए जाएंगे इससे पहले राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने चमोली जिले में झील का अध्ययन करने के बाद पूरे क्षेत्र स्पेसिफिकेशन तैयार कर लिया है और सेंसर लगाने की कार्रवाई की जा रही है…

दरअसल हिमालय राज्यों में अक्सर ग्लेशियर झील बनने के साथ ही उससे आपदा का खतरा भी बढ़ने लगता है जैसे-जैसे झील पुरानी होती है वैसे ग्लेशियर में पानी की स्थिति समय के साथ बढ़ती है और एक समय इस बढ़ते पानी का दबाव इतना ज्यादा हो जाता है की झील फट जाती है जो निचले इलाकों में आपदा का एक बड़ा कारण बनती है जैसा केदारनाथ में साल 2013 में देखा गया था यही कारण है कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने देश के हिमालय राज्यों में मौजूद अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों का अध्ययन कर रही है जिससे आपदा के कारण होने वाले नुकसान से बचा जा सके.